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DOI: https://doi.org/10.63345/ijre.v14.i12.1
कुवर मंगेश प्रल्हाद
अनुसंधानार्थी
महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय
उत्तराखंड
डॉ. सुचिता उपाध्याय
मार्गदर्शक
महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय
उत्तराखंड
सार— इस शोध का उद्देश्य 1900 से 1950 के बीच महाराष्ट्र में विकसित हो रहे दलित आंदोलन और मराठी प्रेस के परस्पर संबंधों का विश्लेषण करना है। विशेष रूप से यह अध्ययन तीन आयामों—(1) सामाजिक सुधार, (2) दलित सामूहिक पहचान का निर्माण, और (3) राजनीतिक जागरूकता एवं संगठित संघर्ष—के संदर्भ में मराठी प्रेस की भूमिका को समझने का प्रयास करता है। शोध में ऐतिहासिक-व्याख्यात्मक पद्धति अपनाई गई है, जिसमें आंबेडकर-सम्बन्धी प्रमुख पत्रों (मूकनायक, बहिष्कृत भारत, जनता आदि) तथा अन्य मराठी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं की सामग्री का गुणात्मक पाठ-विश्लेषण किया जाएगा। साथ ही, पूर्ववर्ती शोध-साहित्य, आत्मकथाओं, सरकारी प्रतिवेदनों और समकालीन टिप्पणियों को पूरक स्रोत के रूप में उपयोग किया जाएगा, ताकि दलित अनुभव, भाषा और विमर्श की निरंतरता तथा परिवर्तन दोनों को समझा जा सके।
प्रारम्भिक निष्कर्ष संकेत करते हैं कि जहाँ मुख्यधारा मराठी प्रेस पर उच्च-वर्ण वर्चस्व बना रहा, वहीं दलित प्रेस ने “मूक” समुदायों के लिए एक स्वतंत्र सार्वजनिक मंच तैयार किया। आंबेडकर की पत्रकारिता ने दया या दान पर आधारित सुधारवादी दृष्टिकोण से आगे बढ़कर अधिकार, प्रतिनिधित्व, आत्मसम्मान और सामाजिक न्याय पर केन्द्रित संघर्षशील भाषा विकसित की। 1930 के बाद दलित प्रेस ने किसान–मज़दूर प्रश्नों, संवैधानिक अधिकारों और लोकतांत्रिक राजनीति को दलित एजेंडा से जोड़ा, जिससे आंदोलन का वैचारिक क्षितिज व्यापक हुआ।
यह शोध न केवल दलित आंदोलन के इतिहास में मराठी प्रेस की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करता है, बल्कि आधुनिक भारतीय लोकतंत्र में मीडिया, जाति और सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्सम्बंधों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण वैचारिक ढांचा भी प्रस्तावित करता है।
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